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नारद मुनि का स्वभाव ऐसा है कि वह झगड़ा सुलझाने से ज्यादा झगड़ा लगाने वाले हैं. काशीनरेश अयोध्या में भगवान श्रीराम के दर्शनों के लिए पहुंचे.
नारदजी भी प्रभुदर्शन को आए थे. नारद ने काशीराज को समझा दिया कि आप दरबार में सबको प्रणाम करना लेकिन वहां बैठे विश्वामित्र को प्रणाम न करना.
काशी नरेश ने कारण पूछा तो नारदजी ने कहा कि प्रभु की ऐसी ही मंशा समझ लो. बाकी का मर्म आपको बाद में बताउंगा.
काशीराज ने नारद के कहे मुताबिर सबको प्रणाम किया लेकिन विश्वामित्र को प्रणाम नहीं किया. विश्वामित्र क्रोधित हो गए.
उन्होंने श्रीराम से कहा कि अब मैं अयोध्या में नहीं रह सकता क्योंकि यहां मेरा घोर अपमान हुआ है.
प्रभु ने कहा- आपका अपमान तो मेरा अपमान है. ऐसा पाप करने वाले को मैं आप जो कहें दंड दूंगा.
विश्वामित्र ने कहा कि काशीराज ने अपमान किया इसलिए उन्हें श्रीराम प्राणदंड दें. प्रभु ने कहा कि चौबीस पहर बीतने से पहले काशीराज जीवित नहीं रहेगा.
नारदजी के सिखावे में तो काशी नरेश के प्राण संकट में पड़ गए.
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