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बातचीत में दुकानदार को विक्रमादित्य पसंद आ गए. उसने सोचा कि व्यक्ति है तो ज्ञानी. शरीर से भी ऊंचे कुल का लगता है, समय का मारा है.

क्यों न इससे अपनी इकलौती बेटी का ब्याह कर दिया जाए. इस तरह यह दुकान में बैठने लगेगा और घर में भी रहेगा. एक पंथ दो काज हो जाएंगे.

उसने अपनी बेटी के लिए विक्रमादित्य को चुन लिया. दुकानदार ने बेटी को भी अपनी सारी योजना बता दी और कहा कि वह भी विक्रम से बात कर परख ले. पुरुष गुणवान है.

बेटी विक्रमादित्य से बातचीत के लिए उस कमरे में पहुंची जहां उन्हें ठहराया गया था. थके होने के कारण विक्रमादित्य को लेटते ही गहरी नींद आ गई.

कन्या उनके जागने का इंतज़ार कर रही थी पर दैवयोग से उसे खुद जोरों की नींद आने लगी.

दुकानदार की बेटी ने अपने गहने उतारकर दीवार पर बने एक बत्तख के चित्र के साथ लगी कील पर लटका दिया और सो गई. विक्रमादित्य की नींद खुली तो देखा कि चित्र का बत्तख कन्या के गहने निगल रहा है.

घबराहट में उन्होंने दुकानदार की बेटी को पुकारा. जब तक वह जागी तब तक तो गहने गायब हो चुके थे. उसने शोर मचाया कि अतिथि चोर है. चोरी करने के बाद बहाने बना रहा है.

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