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तभी भगवान वामन का आकार बढ़ने लगा. उनके विराट स्वरूप में बलि को पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, समुद्र, पाताल समस्त चराचर जगत दिखाई पड़ने लगा.
उन्होंने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया. दूसरे पग से अंतरिक्ष और स्वर्ग को नाप लिया. तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान ही नहीं शेष रह गया.
दैत्य इस छल से बड़े आहत थे. वे अस्त्र लेकर दौड़े. बलि ने उन्हें रोका और कहा कि अब हमारी यही गति है इसलिए हम सब अब सुतल वासी बनें. अब यहां से प्रस्थान करो.
भगवान के आदेश पर गरूड़ ने बलि को वरूणपाश में बांध लिया. प्रभु ने कहा- राजा बलि तुम प्रतिज्ञाबद्ध हो. यदि तीसरे पग को भूमि न मिली तो तुम नरक भोगोगे.
बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया और कहा आप तीसरा पग रखें. बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठे. तभी वहां प्रहलाद पधारे. उन्होंने प्रभु को प्रणाम कर स्तुति की.
प्रहलाद ने कहा- प्रभु आपका देना जितना उत्तम, लेना भी वैसा ही उत्तम. दैत्यराज ने अपना शरीर आत्मा सहित आपको समर्पित कर दिया. इन्हें दंड का भागी न बनाएं.
ब्रह्मा ने भी बलि को मुक्त करने की प्रार्थना की. भगवान बोले- बलि अपने धर्म से विचलित नहीं हुए. इसलिए वह दंड के भागी हो ही नहीं सकते.
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