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नारदजी ने कहा- प्रभु संसार को धारण करने वाले आप स्वयं खुद को भक्तों से छोटा मानते हैं फिर भक्तगण क्यों यह छोटे-बड़े का भेद करते हैं. मुझे अपनी अज्ञानता पर दुख है. मैं आगे से कभी भी छोटे-बड़े के फेर में नहीं पडूंगा.
यह कहानी मैंने आपको क्यों सुनाई, यह बताऊंगा नहीं क्योंकि कई बार कथा के पीछे का रहस्य श्रोता के सोचने के लिए छोड़ना ही उचित होता है क्योंकि श्रोता या पाठक की बुद्धि लेखक और कथाकार से बड़ी होती है. वह उचित अर्थ निकाल लेता है और वही श्रेष्ठ है.
इसीलिए तो कहते हैं- भगत के वश में हैं भगवान. भक्त अपनी निष्काम भक्ति से भगवान को वश में कर लेता है. तेरा तुझको सौंपते क्या लागे है मोरा इसी भाव में रहिए तो त्रिलोक के स्वामी आपके पास आकर बस जाने को लालायित रहेंगे.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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