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फिर भी उन्होंने कहा- प्रभु आप कहते हैं तो अब अगस्त्य मुनि को ही बड़ा मान लेता हूं.
नारदजी अभी इस बात को स्वीकारने के लिए तैयार हुए ही थे कि विष्णुजी ने नई बात कहकर उनके मन को चंचल कर दिया.
श्रीविष्णुजी बोले- नारदजी पर ये भी तो सोचिए वह रहते कहां हैं. आकाशमंडल में एक सूई की नोक बराबर स्थान पर जुगनू की तरह दिखते हैं. फिर वह कैसे बड़े, बड़ा तो आकाश को होना चाहिए.
नारदजी बोले- हां प्रभु आप यह बात तो सही कह रहे हैं. आकाश के सामने अगस्त्य ऋषि का तो अस्तित्व ही विलीन हो जाता है. आकाश ने ही तो सारी सृष्टि को घेर आच्छादित कर रखा है. आकाश ही श्रेष्ठ और सबसे बड़ा है.
भगवान विष्णुजी ने नारदजी को थोड़ा और भ्रमित करने की सोची.
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