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दरअसल विद्यापति गंगाजी के किनारे ही पैदा हुए थे और सदैव गंगास्नान करते थे. शिव की जटाओं से बहने वाली गंगाजल का स्पर्श और स्वाद उनके लिए कोई अनूठा नहीं था लेकिन इस वीराने में गंगाजल कहां से आया.

आखिर ये उगना है कौन? सैकड़ों कोस दूर बहने वाली गंगाजी का शीतल जल कुछ ही पलों में इसके पास कैसे आया! सालों से मेरे साथ लगा हुआ है, कभी पगार नहीं मांगी, कोई छुट्टी नहीं की. कहीं कोई भूत, बेताल या असुर तो नहीं?

ऐसी शक्ति किसी मनुष्य के पास तो आ नहीं सकती? संदेह भरे हजारों सवाल सर उठाने लगे.

विचारों में उलझते विद्यापति ने उगना से ही सवाल कर दिया कि तुमने यह गंगाजल कहां से पाया. तुम कौन हो, अपना वास्तविक परिचय कहो.

उगना शुरू में तो ना-ना करते रहे लेकिन जब विद्यापति ने हाथ में जल लेकर संकल्प किया कि अगर उगना उनके सवालों का जवाब नहीं देता तो वह यहीं बियाबान में अन्न जल त्याग कर अपने प्राण दे देंगे. महादेव ने भक्त का प्रण सुना तो दहल गए.

हारकर विद्यापति के सामने अपना वास्तविक स्वरूप प्रकट करना पड़ा.

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