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सेठ की पत्नी बहुत पतिव्रता और सिद्ध थी. उसने ध्यान लगाकर देख लिया कि आज व्यापारी ने कुतिया को रोटी खिलाई है. उसने अपने पति से कहा कि उसका आज का पुण्य खरीदना जो उसने एक जानवर को रोटी खिलाकर कमाया है. वह उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ पुण्य है.

व्यापारी शाम को फिर अपना पुण्य बेचने आया. सेठ ने कहा- आज आपने जो यज्ञ किया है मैं उसका पुण्य लेना चाहता हूं.

व्यापारी हंसने लगा. उसने कहा कि अगर मेरे पास यज्ञ के लिए पैसे होते तो क्या मैं आपके पास पुण्य बेचने आता!

सेठ ने कहा कि आज आपने किसी भूखे जानवर को भोजन कराकर उसके और उसके बच्चों के प्राणों की रक्षा की है. मुझे वही पुण्य चाहिए. व्यापारी वह पुण्य बेचने को तैयार हुआ. सेठ ने कहा कि उस पुण्य के बदले वह व्यापारी को चार रोटियों के वजन के बराबर हीरे-मोती देगा.

चार रोटियां बनाई गईं और उसे तराजू के एक पलड़े में रखा गया. दूसरे पलड़े में सेठ ने एक पोटली में भरकर हीरे-जवाहरात रखे. पलड़ा हिला तक नहीं.

दूसरी पोटली मंगाई गई. फिर भी पलड़ा नहीं हिला.

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4 COMMENTS

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