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काल हर जगह मौजूद होते हैं. वह भी इस वार्तालाप को सुन रहे थे. उन्होंने सोचा कि इन सबकी शंका का समाधान करना चाहिए अन्यथा भ्रम में ये दोषारोपण करते रहेंगे.
काल प्रकट हुए और बोले- अर्जुनक इस बालक की मृत्यु का कारक न तो यह सांप है, न मृत्यु और न ही मैं. अपनी मृत्यु का प्रेरक यह बालक स्वयं है.
काल बोले- संसार में हर प्राणी स्वयं अपने काल का प्रेरक है. इंसान का कर्म हमेशा उसका पीछा करता है. कर्मों के अनुसार जीवों के काल की दशा तय होती है.
जिस प्रकार मिट्टी के लोंद से अपनी पसंद का बर्तन बनाता है. उसी प्रकार जीव अपने कर्म से अपने लिए काल का विधान तय करता है. तुम इस सांप को मुक्त कर दो.
अर्जुनक और ब्राह्मणी दोनों काल की बात से संतुष्ट होकर चले गए. विधाता ने मृत्यु का निर्धारण करने का मानदंड तय किया है.
काल प्राणी के कर्मों के आधार पर उसका अंत लिखते हैं. जिसने भी जन्म लिया उसका अंत निश्चित है.
अंत आसान हो या कष्टप्रद इसका निर्धारण कर्मों के आधार पर होता है. हमें तय करना है कि हम अपने लिए कैसी मृत्यु की इच्छा रखते हैं.(महाभारत की कथा)
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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