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जब असावरी देवी की बात उन्होंने सुनी तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया पर वचनबद्ध थीं इसलिए सहन करना पड़ा.

शिवजी ने कहा- बहन असावरी कहीं यह तुम्हारी को बदमाशी तो नहीं.

शिवजी की बात सुनकर असावरी देवी हंसने लगी और जमीन पर पांव पटक दिया. पैर की दरारों में दबी देवी पार्वती बाहर आ गिरीं.

पार्वतीजी ने शिवजी से कहा- हे स्वामी! भाभी होने के नाते मेरा एक और दायित्व मुझे स्मरण हो आया. ननद को जल्दी से ससुराल भेजने की कृपा करें.

शिवजी हंसने लगे. उन्होंने ठिठोली की- क्या हुआ ननद के प्रति प्रेम बहुत शीघ्र समाप्त हो गया. कुछ दिन और आनंद लो. अभी तो ननद की लीलाएं देखी ही कहां हैं!

पार्वतीजी बोल पड़ीं- नहीं, नहीं. मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने ननद की चाह की. इन्हें शीघ्र ही ससुराल भेजिए.

भगवान शिव ने अपनी माया समेटी और असावरी देवी को कैलाश से विदा कर दिया.

शिवजी बोले- पार्वती यह तो मेरी माया थी. आपमें संतुष्टि का भाव लुप्त हो रहा था. उसे दूर करने के लिए यह सब मैंने किया लेकिन इससे संसार में ननद-भाभी के बीच नोंक-झोंक की परंपरा शरू हो जाएगी.

कहते हैं इसी कारण ननद-भाभी में छोटी-बड़ी नोक-झोंक होती रहती है.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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