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इतनी कथा सुनाकर उस पक्षी ने अपना शरीर त्याग दिया. यह एक अदभुत-सी घटना हुई. वही पक्षी अब दसवें अध्याय के प्रभाव से ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ है. जन्म से ही अभ्यास होने के कारण शैशवावस्था से ही इसके मुख से सदा गीता के दसवें अध्याय का उच्चारण हुआ करता है.
दसवें अध्याय के अर्थ-चिन्तन का यह परिणाम हुआ है कि यह सब भूतों में स्थित शंख-चक्रधारी भगवान विष्णु का सदा ही दर्शन करता रहता है.
इसकी स्नेहपूर्ण दृष्टि जब कभी किसी देहधारी के शरीर पर पड़ जाती है, तब वह चाहे शराबी और ब्रह्म हत्यारा ही क्यों न हो, मुक्त हो जाता है तथा पूर्वजन्म में अभ्यास किए हुए दसवें अध्याय के माहात्म्य से इसको दुर्लभ तत्त्वज्ञान प्राप्त हुआ तथा इसने जीवन्मुक्ति भी पा ली है।
अतः जब यह रास्ता चलने लगता है तो मैं इसे हाथ का सहारा दिये रहता हूँ. भृंगिरिटी! यह सब गीता के दसवें अध्याय की ही महामहिमा है.
पार्वती ! इस प्रकार मैंने भृंगिरिटि के सामने जो पापनाशक कथा कही थी, वही तुमसे भी कही है। नर हो या नारी अथवा कोई भी क्यों न हो इस दसवें अध्याय के श्रवण मात्र से उसे सब आश्रमों के पालन का फल प्राप्त होता है.
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