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उस पक्षी ने उत्तम स्तोत्रों से मेरी स्तुति की जिससे मैं प्रसन्न हो गया. मैंने उससे पूछा- “विहंगम! तुम कौन हो और कहाँ से आये हो? तुम्हारी आकृति तो हंस जैसी है, मगर रंग कौए का मिला है. तुम जिस प्रयोजन को लेकर यहाँ आये हो, उसे बताओ।”
पक्षी बोला- देवेश! मुझे ब्रह्माजी का हंस जानिए. जिस कर्म से मेरे शरीर में इस समय कालिमा आ गयी है, उसे सुनिये. प्रभो! यद्यपि आप सर्वज्ञ हैं, अतः आप से कोई भी बात छिपी नहीं है तथापि यदि आप पूछते हैं तो बतलाता हूँ.
सौराष्ट्र (सूरत) नगर के पास एक सुन्दर सरोवर है, जिसमें कमल लहलहाते रहते हैं. उसी में से श्वेत मृणालों के ग्रास लेकर मैं तीव्र गति से आकाश में उड़ रहा था. उड़ते-उड़ते सहसा वहाँ से पृथ्वी पर गिर पड़ा.
जब होश में आया और अपने गिरने का कोई कारण न देख सका तो मन ही मन सोचने लगाः आज मेरा पतन कैसे हो गया? पके हुए कपूर के समान मेरे श्वेत शरीर में यह कालिमा कैसे आ गयी?
मैं अभी विचार ही कर रहा था कि उस पोखरे के कमलों में से मुझे ऐसी वाणी सुनाई दी- ‘हंस! उठो, मैं तुम्हारे गिरने और काले होने का कारण बताती हूं. मैं उठकर सरोवर के बीच गया और वहाँ पाँच कमलों से युक्त एक सुन्दर कमलिनी को देखा. उसको प्रणाम करके मैंने अपने पतन का कारण पूछा.
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