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अब जब प्रियमेध की नौवीं पीढी में साकमश्व पैदा हुआ तो भी कक्षीवान की अनाज की थैली में दाने मौजूद थे. वे आज भी अपनी पहेली के उत्तर का इंतज़ार कर रहे थे.

साकमश्व विद्वान निकला पर उसे यह बात कलंक की तरह लगती कि उसके आठ पुरखे एक पहेली को सुलझाये बिना ही स्वर्ग सिधार गए, आज भी पहेली और उसे पूछने वाला जिंदा है.

सामकश्व ने निश्चय किया कि मैं अपने खानदान से इस कलंक को मिटाउंगा, इस पहेली को जरूर सुलझाऊंगा. वह इसके बारे में सोच ही रहा था कि उसी समय उसे एक `साम’ यानी सामवेद का श्लोक सूझा.

उसने वह साम यानी सामवेद का गाए जाने वाले श्लोक को उसके लिये निर्धारित लय में गाया और पहेली का उत्तर मिल गया. वह तुरन्त कक्षीवान के पास भागा. कक्षीवान ने सामकश्व को दौडकर आते देखा.
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