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रोग ने कहा- तुम्हारी बात ठीक है लेकिन जब मैं आ जाता हूं तो तंदरूस्ती वहां से रवाना हो जाती हैं.

अब उस आदमी का धैर्य जवाब देने लगा था. क्रोध, लोभ, भय और रोग उसके बहुत पास आ गए. वे बड़े प्रसन्न दिख रहे थे. उन्हें पास देखकर वह बेचैन होने लगा.

उस आदमी ने चारों से कहा- मैं परेशान हो गया हूं. मुझे अकेला रहने दो. यहां से चले जाओ. चारों ने कहा- अभी तक तुम्हारे शरीर में हम प्रवेश नहीं कर पा रहे थे.

अब हमारा समय शुरू होने वाला है. जैसे ही तुम परेशान होकर उग्र होगे, क्रोध समा जाएगा. फिर लज्जा, हिम्मत और तंदुरुस्ती को भगाकर हम सभी प्रवेश कर जाएंगे.

हममें एक औऱ खास बात है, हम यदि मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाएं तो जल्दी बाहर भी नहीं निकलते. तुम सावधान हो जाओ.

कितना सच है यह. हमारी थोड़ी सी असावधानी, सदगुणों को बाहर कर अवगुणों को प्रवेश करा देती हैं.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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