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कोसल राज्य में देवदत्त नामक विद्वान ब्राह्मण रहते थे. उनके विवाह को कई वर्ष बीत गए लेकिन कोई संतान न हुई.
पत्नी ने देवदत्त से कहा- आप अनेक राजाओं के पुरोहित हैं, मनोकामना यज्ञ कराते हैं. क्या अपनी संतान के लिए पुत्र कामेष्टी यज्ञ नहीं कर सकते?
देवदत्त ने कहा- मैंने आज तक अपनी विद्या का प्रयोग अपने उपकार के लिए नहीं किया लेकिन तुम्हारी इच्छा रखते हुए पुत्र प्राप्ति के लिए मैं पुत्र कामेष्टि यज्ञ करूंगा.
देवदत्त ने कई ऋषि-मुनियों को पुरोहित बनाया और तमसा नदी के किनारे पुत्र कामेष्टी यज्ञ आरंभ हुआ. यज्ञ करने वालों में से एक गोभिल ऋषि मंत्र पढ़ते समय उच्चारण का दोष कर देते थे.
देवदत्त ने अशुद्ध उच्चारण के लिए गोभिल को टोक दिया. गोभिल इस बात से क्रोध से भड़क गए. उन्होंने शाप दिया- तुम मुझे मूर्ख समझते हो! मेरा शाप है कि तुम्हारी जो संतान होगी वह मूर्ख होगी.
देवदत्त ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत कराया और शाप वापस लेने को कहा. गोभिल ऋषि ने कहा कि उन्हें शाप वापस लेना नहीं आता परंतु उसमें थोड़ा संशोधन कर देता हूं. तुम्हारा पुत्र जन्म से मूर्ख भले हो किंतु समय आने पर प्रकांड विद्वान बनेगा.
देवदत्त के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया. उसका नाम रखा गया उतथ्य. उसे पढ़ने के लिए गुरूकल भेजा तो गया लेकिन शाप के कारण वह एक अक्षर नहीं सीख पाया. सारे देश में शोर हो गया कि देवदत्त जैसे विद्वान का अपना पुत्र ही मूढ़ है.
लोगों के प्रतिदिन के तानों से देवदत्त दुखी तो थे लेकिन वह जानते कि यह शाप के कारण हो रहा है लेकिन उतथ्य को यह पता नहीं था. अपने कारण माता-पिता के हो रहे अपमान से दुखी उसने घर छोड़ने का निर्णय किया.
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रामायण कि एक वचन जीवन के लिऐ अनमोल है