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सौदागर सारी बात अब समझ गया था.

अब फकीर मुस्कुराता हुआ मस्ती में चला जा रहा था और सौदागर के मन के भाव बदले हुए थे.

सौदागर को महसूस हो रहा था जैसे उसके मन का बड़ा बोझ उतरा है. वह मानसिक सुकून महसूस कर रहा है, एक अलग ही दिव्य संसार में पा रहा था खुद को.

सोच रहा था कि किन चक्करों में था वह अब तक. यह फकीर उसे पहले क्यों नहीं मिला?

ऐसे तरह-तरह के भाव आ ही रहे थे कि तभी उसके ग्राहक उसके पास आते दिखे और एक मिनट में उसका वह भाव गायब हो गया.

अब वह फिर से पुराने वाले आनंद में लौट आया था. गधों पर लदा सामान पहले से ज्यादा मुनाफे में बेच रहा था. दुखी होने की बारी फिर से फकीर की ही थी.

सौदागर के मन में आए ये भाव ही आध्यात्म का प्रभाव हैं. जब हमें फकीर के रूप में आध्यात्म और धर्म का ज्ञान मिलता है तो जीवन का मूल्य समझ में आता है. पर यह भाव टिकते नहीं तुरंत निकल जाते हैं क्योंकि हम इस चक्रव्यूह में फंसे रहने के आदी हो गए हैं.

-राजन प्रकाश

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