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उन्होंने उपमन्यु को नेत्र प्रदान करने वाली औषधि देकर कहा- इसे तुरंत खा लो. तुम्हारी आंखों की रौशनी वापस आ जाएगी.

उपमन्यु ने अश्विनीकुमारों का आभार व्यक्त करते हुए कहा- देव, क्षमा करें. मैं अपने गुरू की आज्ञा के बिना कुछ नहीं खा सकता.

अश्विनी कुमारों ने उपमन्यु की परीक्षा लेने के लिए- तुम्हारे गुरू भी एक बार अंधे हो गए थे. हमने उन्हें भी औषधि दी. उन्होंने भी बिना अपने गुरू की आज्ञा लिए इसे खाकर अपनी आंखें पाई थीं.

उपमन्यु ने कहा- वह मेरे गुरू हैं. उन्होंने कुछ भी किया हो, मुझे उससे कोई सरोकार नहीं. परंतु मैं बिना गुरू की आज्ञा के नहीं खाउंगा भले ही मुझे जीवनभर अंधा रहना पड़े.

इस गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर अश्विनी कुमारों ने उपमन्यु को बहुत सी विद्या देकर ज्ञानी बना दिया. (उपनिषद की कथा)

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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