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इतना कहना भर था कि आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. रत्नों से सजे धजे कई विमान आसपास उतर आए. शिकारी निष्ठुरक अद्वैत ब्रह्म का उपासक था सो उसने योग विद्या से कई शरीर बना लिए तथा अनेक विमानों में बैठ स्वर्ग चला गया.

वृहस्पति बोले- तो हे राजन वसु और मुनिवर रैभ्य, इससे यह सिद्ध होता है कि अपने वर्ण और आश्रम के अनुरूप कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने के बाद मुक्ति का अधिकारी हो जाता है.

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