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कौशिक प्रभु गुण गाकर भिक्षा मांगते थे और बचा समय भगवान के भजन पूजन में ही लगाते. उनके बहुत-से शिष्य थे. भक्त पद्माक्ष उनके और उनके शिष्यों के भोजन का प्रबंध करते थे. शिष्यों के साथ जब वे गाते समां बंध जाता.
कौशिक के शिष्यों में एक पतिपत्नी भी थे मालव और मालवी. मालव भगवान् को दीपकों की माला से सजाता तो उसकी पत्नी मालवी मंदिर की सफाई करती. पति-पत्नी कौशिक का गायन सुनते और आनंदित होते रहते.
कौशिक के दिव्यगान की चर्चा चारों ओर गूंज उठी. हजारों ब्राह्मण उनकी संगीत साधना से जुड़ गये. कौशिक मंदिर छोड़, भिक्षा मांगने के अलावा कहीं नहीं जाते थे. कलिंग के राजा भी कौशिक की भक्ति देखने आया.
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