महादेव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं महालक्ष्मी ने बेलवृक्ष का रूप लिया था और शिवलिंग को अपनी छाया प्रदान करती थीं. खुश होकर शिवजी ने महालक्ष्मी से कहा कि बेलवृक्ष की जड़ों में मेरा निवास होगा और बेलपत्र मुझे अतिप्रिय होगा.

कालकूट विष पीने के बाद शिवजी के मस्तिष्क को शांत करने के लिए देवों ने उन्हें जल से नहलाया. उसके बाद बेलपत्र सिर पर रखे. बेलपत्र की तासीर ठंढ़ी होती है इसलिए शिवजी को जल के साथ बेलपत्र अतिप्रिय है.

बिल्ववृक्ष का दर्शन, स्पर्श व प्रणाम भी पुण्यकारी है. शिवजी को अखंडित बेलपत्र चढ़ाने से शिवलोक प्राप्त होता है. बेलपत्र के लिए कुछ सावधानियां कही गई हैं. चौथ, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, चौदस, संक्रांति व सोमवार को बिल्वपत्र तोडना मना है.

बेलपत्र उल्टा अर्पित करें यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग को स्पर्श करे. पत्र में चक्र या वज्र नहीं होना चाहिए. कीड़ों द्वारा बनाए सफेद चिन्ह को चक्र व बेलपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं. 3 से 11 पत्ते तक के बेलपत्र होते हैं. जितने अधिक पत्रों के हों उतना उत्तम.बेलपत्र चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें-

त्रिद्लं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मं पापसंहारम् एक बिल्व शिव अर्पिन।।

यदि मंत्र याद न हो तो ऊं नमः शिवाय जपें.बेलपत्र न मिल पाए तो उसके स्थान पर चांदी का बेलपत्र चढ़ाया जा सकता है जिसे रोज शुद्धजल से धोकर शिवलिंग पर पुनः अर्पण कर सकते हैं. बेलवृक्ष की जड़ में शिव का वास है इसलिए जड़ में गंगाजल के अर्पण का बड़ा महत्व है.

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