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इसके बाद इस संत का भ्रम दूर किया जाएगा. वह उस गांव में पहुंचे जहां संत पर पत्थर बरसाए गए थे.

गए तो क्या देखा कि भयंकर आंधी तूफान से सब परेशान हैं. सब की आत्मा से एक ही आवाज आ रही है. संत के साथ हमने ठीक नहीं किया. इसी कारण यह सब हो रहा है.

हम सब को एक साथ चलकर संत से क्षमा मांगना चाहिए. सभी पछता रहे थे और वे चल पड़े. खोजते हुए पहुंचे. उनकी अंतरात्मा में राम ने चोट की और बाहर की चोट प्रकृति ने दी तो तो सब संत क्षमा मांगने लगे.

संत ने कहा- हम तो रामनाम की धुन में मगन रहने वाले बस ईश्वर का मार्ग बताते हैं. तुम सब ने जो पत्थर नहीं फूल फेंके थे तभी तुम भगवान की राह पर चले आए हो. यही सच्चा प्रेम है. हम सब मिलकर ईश्वर और प्रकृति की प्रार्थना करके उन्हें शांत करें.

मेरे भगवान तेरे पथ पर हम सदा चलते रहें. प्रेम आपस में करे और सब के संग मिलकर चलें

संत की शोभा और गरिमा उनकी दयालुता में ही है. संत परमार्थी होते हैं तभी तो ईश्वर भी उनके बस में होते हैं. संत वचन न पलटे, पलट जाए ब्रह्माण्ड.

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