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इंद्र भयभीत हो कर गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी रणनीति की समीक्षा करने को और सिर पर आ पहुंची पराजय से बचने का उपाय सुझाने का अनुरोध किया. युद्ध ऐसी स्थिति में पहुंच चुका था कि वह भी कुछ नहीं कर सकते थे.
फिर बृहस्पति ने सुझाव दिया कि इंद्र की पत्नी शची विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार करे और श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन उचित मंत्रों के साथ वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांध दे. शायद इससे इंद्र को लाभ हो जाए.
दैत्यराज, शची ने बृहस्पति के कहे अनुसार इंद्र को रक्षासूत्र बांधकर देवताओं को अजेय बना दिया. फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई. उसी के तेज और प्रभाव से तुम सब इंद्र से परास्त हुए हो.
शुक्राचार्य ने समझाया- दानवेन्द्र! इस समय वर्ष भर के लिए तुम देवराज इंद्र के साथ संधि कर लो. एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो. उसके बाद ही तुम्हारा कल्याण होगा.
शुक्राचार्य के वचन सुनकर सभी दानव निश्चिन्त हो गए कि इस प्रकार की संधि करने के पश्चात देवतागण अब वर्षभर बाद ही आक्रमण करेंगे तब तक हम और तैयारी कर सुनिश्चित विजय प्राप्त कर लेंगे. असुर उचित समय की प्रतीक्षा करने लगे.
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- रक्षासूत्र का मैंने विलक्षण प्रभाव आपको बताया. इससे विजय, सुख, पुत्र, आरोग्य और धन भी प्राप्त होता है. यह रक्षा विधान बाद में रक्षा-बंधन के रूप में आया और बहन अपने भाई से रक्षा का दायित्व लेने लगी.
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