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वसुदेवजी बालरूपी भगवान श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखकर गोकुल के लिए चले. उधर प्रभु के आदेश पर योगमाया ने नंदबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म ले लिया था.
योगमाया ने सबकी निद्रा ही हर ली ताकि किसी को इस बात का पता न चल सके कि वसुदेवजी शिशुओं की अदला-बदली करने आए हैं. वसुदेवजी जब श्रीकृष्ण को लेकर चले तो खूब बारिश हो रही थी. यमुना का जल उफन आया था.
शेषजी भी गुप्त रूप से पीछे-पीछे छत्र बनाए चलने लगे. यमुना को तो श्रीकृष्ण के पांव पखारने थे. जैसे ही प्रभु के पैरों का स्पर्श मिला, यमुना का जल स्थिर हो गया. उसने वैसी ही राह दे दी जैसे भगवान श्रीराम को समुद्र ने दिया था.
वसुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदाजी के बगल में लिटा दिया और स्वयं उनकी कन्या को लेकर कारागार में वापस चले आए. कारागार के फाटक स्वतः बंद हो गए. कन्या को देवकी के बगल में लिटाकर वसुदेव ने पैरों की बेड़ियां डाल लीं.
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