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विवाहिता जयश्री देखते ही उस युवक पर मोहित हो गई और इशारे में ही जयश्री ने उसे अपनी सखी के घर का पता बता दिया. जयश्री की सहेली के घर पहुंचा और फिर अपने सहेली की मिली भगत होने के चलते जयश्री उससे रोज मिलने लगी.
रात होते ही वह उस सखी के घर चली जाती और रात-भर वहां रहकर दिन निकलने से पहले ही अपने घर लौट आती. इस तरह बहुत दिन बीत गए. उनका प्रेम परवान चढ़ रहा था कि कुछ दिनों बाद श्रीदत्त परदेस से लौट आया.
जयश्री के घर से निकलने पर बंदिश हो गई. वह बड़ी दु:खी रहने लगी और सोचती कि क्या उपाय करे? श्रीदत्त हारा-थका था. जल्दी ही उसकी आंख लग गई और जयश्री अवसर देख अपने प्रिय से मिलने चल दी.
रात के अंधेरे में जयश्री के रास्ते में एक चोर खड़ा था. वह देखने लगा कि यह सजी धजी युवती इतनी रात को कहाँ जाती है. चोर ने यह जानने के लिए उसका पीछा किया. धीरे-धीरे वह सहेली के मकान पर पहुँची. चोर भी पीछे-पीछे गया.
संयोग खराब थे. वह युवक जब जयश्री की प्रतीक्षा अंधेरे में खड़ा होकर एक स्थान पर कर रहा था. तभी उसको साँप ने काट लिया था. जब जयश्री उसके पास पहुंची तब वह मरा पड़ा था. जयश्री को लगा कि वह स्वांग कर रहा है.
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