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माता जगदंबा ने निमि को दर्शन दिए. निमि ने मांगा- मुझे ऐसा ज्ञान दें जिससे मैं अशरीर होते हुए सभी मोह-माया से मुक्त रहूं और प्रजा के नेत्रों में ठहर सकूं.
भगवती ने कहा- अभी तुम्हारा प्रारब्ध भोग पूर्ण नहीं हुआ है. तुम्हें मैं सभी चर और अचर प्राणियों के नेत्र में वास करने का अधिकार देती हूं. तुम पृथ्वी लोक पर आने वाले सभी जीवों में आंखों की पलक बनोगे.
तुम्हारे कारण ही प्राणियों को आंखों की पलक गिराने की शक्ति मिलेगी. देवतागण इससे मुक्त रहेंगे. इसलिए वे अनिमिष कहलाएंगे. देवी ने मुनियों को कहा कि निमि के शरीर के मंथन से एक दिव्य पुत्र पैदा होगा जो विदेह कुल का मान बढ़ाएगा.
निमि के बाद उनके भाई देवरात ने शासन संभाला. देवरात का प्रताप ऐसा था कि जिस पिनाक धनुष को महादेव ने सतीदाह के बाद देवताओं के वध के लिए उठा लिया था, क्रोध शांत पर होने पर वह धनुष महादेव ने देवताओं को भेंट कर दिया.
देवताओं को उस धनुष के सर्वोत्तम पात्र राजा देवरात लगे. इंद्र ने भगवान शिव का वह धनुष पिनाक उनके पास सुरक्षित रखने के लिए दिया था. इसी कुल में राजा जनक हुए, जिनकी पुत्री वैदेही से श्रीराम का विवाह हुआ. भगवान ने वही धनुष तोड़कर स्वयंवर जीता था.
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