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रुक्मी ने आगे कहा- बलरामजी किस्मत से भले ही आप लोगों को राज-पाट मिल गया है लेकिन आप लोग इसके योग्य नहीं थे. आप तो गाएं ही चरा सकते हैं. राजपाट किसी क्षत्रिय को सौंपिए और गाय चराइए
रूक्मी तरह-तरह से आक्षेप करता जाता और वहां मौजूद राजा उसके इस तरह के उपहास पर जमकर ठहाके लगाते. बलरामजी अतिथि समझकर सब सहन कर रहे थे लेकिन उनका धैर्य जवाब दे गया.
बलराम ने एक मुद्गर उठाया और उस मांगलिक सभा में पीट-पीटकर रुक्मी को मार डाला. बलरामजी के इस प्रचंड क्रोध को देखकर अन्य राजा जान बचाकर प्रभु श्रीकृष्ण की शरण में प्राणरक्षा के लिए भागे.
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आपके द्वारा दी गई कथाएँ काफी रोचक व ग्यानबर्धक है आपको कोटि कोटि आभार