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द्वादश ज्योतिर्लिंगों की शृंखला में नासिक के पास गौतमी नदी के तट पर स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा आपके लिए लेकर आया हूं. इस साल यहां कुंभ भी है.
इस ज्योतिर्लिंग की महिमा और गौतमी के पृथ्वी पर आगमन की कथा बड़ी सुंदर है. दो खंडों में आपको शिल पुराण और स्कंद पुराण आधारित इस ज्योतिर्लिंग की महिमा सुनाउंगा. आज इस धाम की पृष्ठभूमि की चर्चा गौतम ऋषि की कथा से करते हैं.
गौतम ऋषि ने अपनी धर्मपत्नी अहल्या के साथ ब्रह्मगिरि पर्वत पर दस हज़ार वर्षों तक कठोर तप किया. एक बार इस क्षेत्र में सौ वर्षों तक बिल्कुल बारिश नहीं हुई. जल के अभाव में जीवों पर संकट आ गया.
मनुष्यों ने मेघों को बहुत मनाने का प्रयत्न किया लेकिन वर्षा नहीं हुई. हारकर जीवन रक्षा के लिए मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जल की खोज में दूसरे स्थानों को जाने लगे.
गौतम और अहिल्या को इससे बड़ी वेदना हुई. गौतम ने छ: महीने तक घोर तप करके जल के देवता वरुण को प्रसन्न किया. उन्होंने वरुणदेव से जल बरसाने की प्रार्थना की.
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