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आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं॥
मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा॥2॥
जब तेरे पिता बुलाने को आवें, तब हठ छोड़कर घर चली जाना और जब तुम्हें सप्तर्षियों के दर्शन हों तब इस वाणी को ठीक समझना.
सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी॥
उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा॥3॥
इस प्रकार आकाश से कही हुई ब्रह्मा की वाणी को सुनते ही पार्वतीजी प्रसन्न हो गईं और हर्ष से उनका शरीर पुलकित हो गया. इतनी कथा सुनाने के बाद याज्ञवल्क्यजी भरद्वाजजी से बोले कि मैंने पार्वतीजी का सुंदर चरित्र सुना दिया, अब आप शिवजी का सुहावना चरित्र सुनें.(कल शिवजी के चरित्र का वर्णन सुनेंगे)
संपादनः प्रभु शरणम्
Jai Gauri Shankar