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ऋषियों ने कहा- हे ब्रह्मदेव! आपके द्वारा बताई बातों से हमारी जिज्ञासा तो बढ़ती जा रही है. निवारण कैसे हो? प्रभु के रूप अनंत हैं पर उनकी कोई तो वेश-भूषा, पहचान होगी? उन्हें कोई पहचाने कैसे?
ब्रह्माजी बोले- यही तो भ्रम है तुम्हारा. लीलाधर हैं श्रीकृष्ण. वेशभूषा और पहचान कौन तय कर सकता है. कभी ग्वालबाल हैं तो कभी नटखट बालक. कभी दुष्टों के संहारक हैं तो कभी विश्वस्वरूप. जिसका आदि अंत ही नहीं, उसके स्वरूप कैसे बताउं.
ऋषियों ने प्रार्थना की- फिर भी कुछ तो राह दें जिससे हम उनका ध्यान कर सकें. उन्हें प्राप्त कर सकें, उनमें विलीन हो सकें.
ब्रह्माजी ने कहा- श्रीकृष्ण को पाना है तो सबसे पहले स्वयं को भूला दो. उनकी जो अवस्था जो स्वरूप तुम्हें प्रिय हो उसका ध्यान करके उनका नाम जपो. मैं भी यही करता हूं. श्रीकृष्ण में डूब जाओगे तो स्वयं श्रीकृष्ण के सायुज्य हो जाओगे. मैं यही तो करता हूं. मैंने जो बात कही उसे ही सत्य मानो और श्रीकृष्ण का ध्यान करो. तुम उन्हें जिस रूप में पूजना चाहो पूजो, वह हर रूप में सहज हैं. इसीलिए तो वह लीलाधर है.
ब्रह्माजी की बात सुनकर ऋषियों का भ्रम मिट गया. वे संतुष्ट होकर चले गए.
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यह प्रसंग प्रश्न उपनिषद में आया है. अब आप अपनी बुद्धि से इसे परखें. सच ही तो है श्रीकृष्ण के जितने रूप हैं उतने शायद ही किसी के हों. हर रूप की उपासना का अलग महत्व है.
जो संतानहीन हैं वे बालरूप में गोपाल नाम से श्रीकृष्ण को भजते हैं और उनकी मनोकामना पूरी भी होती है.
शीघ्र विवाह की कामना रखने वाले श्रीकृष्ण के राधानाथ स्वरूप को भजते हैं.
जो क्रूर ग्रहों से पीड़ित हैं वे श्रीकृष्ण को गोवर्धनधारी स्वरूप में भजते हैं तो ग्रहों की पीडा शांति होती है.
जिन्हें ऐश्वर्य की कामना है वे श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप को भजकर लाभ पाते हैं.
कारोबार में लाभ के लिए श्रीकृष्ण के कालियामर्दक स्वरूप को भजा जाता है.
रोगनाश के लिए भगवान श्रीकृष्ण के माखनचोर स्वरूप को भजा जाता है.
प्रेम विवाह की इच्छा रखने वाले श्रीकृष्ण के राधानाथ विग्रह को पूजते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक कल्याणकारी स्वरूप को भजने के अलग-अलग मंत्र हैं. ये मंत्र बहुत छोटे और बहुत प्रभावी हैं. इन्हें जपना भी सरल है. आपको इन सबकी जानकारी प्रभु शरणम् में मिलती रहेगी. तभी तो कहता हूं कि तत्काल जुड़ जाइए प्रभु शरणम् से.
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सत्य वचन प्रभु जी