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स्वप्न में दर्शन देकर देवी अंतर्धान हो गईं. कालकेतु के सैनिक भगवती की माया से भ्रमित हो गए तो यशोवती गंगा किनारे पहुंच गई. वहां राजा एकवीर शिकार के बाद विश्राम कर रहे थे. उसने देवी के निर्देश पर एकवीर को सारी बात सुना दी.

तभी भगवती की माया से भगवान दत्तात्रेय वहां पधारे. यशोवती ने एकवीर को परामर्श दिया कि वह भगवान दत्तात्रेय से भगवती के महामंत्र की दीक्षा ले लें. इससे असुरों के संहार में शक्ति मिलेगी.

दत्तात्रेयजी ने एकवीर को भगवती के गुप्त महामंत्र की दीक्षा दी. इस महामंत्र को त्रिलोकी का तिलक कहा जाता है. इस महामंत्र से एकबीर को सबकुछ जानने और कहीं भी पहुंच जाने की शक्ति प्राप्त हो गई.

भगवती के नाम का उदघोष करता हुआ एकबीर सेना सहित कालकेतु पर आक्रमण के लिए चल पड़ा. कालकेतु अपनी सेना लेकर एकबीर से लड़ने आया. दोनों में भीषण युद्ध हुआ. दोनों दिव्यास्त्रों के ज्ञाता थे.

एकबीर ने रौद्ररूप धरकर युद्ध आरंभ किया तो दैत्यसेना आतंकित होकर भागने लगी. कालकेतु सेना को समेटने में उलझा था कि एकबीर तलवार लेकर उसके रथ पर कूदा.

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