शिवलिंग की प्रतिष्ठा कैसे करनी चाहिए? शिवलिंग का आकार-प्रकार कैसा होना चाहिए? शिवलिंग की ऊंचाई संख्या आदि की स्थापित परंपरा. इस विषय पर क्या कहता है शिव पुराण…
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नैमिषारण्य में ऋषियों ने सूतजी से शिवलिंग और शिवलिंग की पूजा के संदर्भ में समस्ता ज्ञान देने को कहा. शिवलिंग की प्रतिष्ठा कैसे करनी चाहिए? शिवलिंग के आकार-प्रकार, परिमाण संबंधित स्थापित परंपरा क्या है? किसी विधि से शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए जिससे महादेव प्रसन्न हों?
ऋषियों के अनुरोध पर सूतजी ने उन्हें वह सब बताना शुरू किया जो उन्हें उनके गुरूदेव भगवान वेद व्यासजी ने बताया था. सूतजी ने इस विषय में जो ज्ञान दिया है वह बहुत विस्तृत है. यह सब शिव पुराण में आता है. आपके लिए इसे संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि आप सरलता से समझ सकें.
शिवलिंग की स्थापना पूजा विधिः
- शुभदिन, शुभ मुहूर्त में नदी अथवा सरोवर के तट पर पार्थिव-मिट्टी, पत्थर, लोहा, चांदी, लाल रंग के वैदूर्य, काले रंग का मरकत अथवा नवरत्नों से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए.
- शिवलिंग का परिमाण यानी लंबाई 22 अंगुल ऊंचा होना चाहिए. इससे अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए. जिस अनुपात में परिमाण का ध्यान नहीं रखते, फल उसी अनुपात में कम हो जाता है.
- शिवलिंग की स्थापना गर्भगृह में होनी चाहिए.
- ब्रह्मवृति का पालन करते हुए बंधु-बांधवों के साथ गाजे-बाजे, वाद्ययंत्र बजाते हुए श्रद्धापूर्वक शिवलिंग का पूजन करें. अग्निहोत्र के साथ षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए.
- ब्रह्मवृति का अर्थ है सात दिन ब्रह्मा-विष्णु और महेश देवों के निमित्त यज्ञ-हवन करें. सामर्थ्यअनुसार दान देकर पुरोहितों को प्रसन्न करें.
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अब मैं आपको भगवान की पार्थिव प्रतिमा के विषय में बताता हूं. पार्थिव यानी पृथ्वी के अंश मिट्टी आदि से निर्मित. पार्थिव शिवलिंग को पूजन के लिए सर्वोत्तम माना गया है. इसके बाद ही अन्य शिवलिंग का स्थान आता है. बाणासुर नर्मदातट पर प्रतिदिन एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग की स्थापना करके उसका पूजन करता था. इस विधि से पूजन करने उसने शिवजी को जीत लिया था.
कहते हैं शिवजी उसके वश में हो गए थे. उसने शिवजी से अपने नगर की रक्षा करने की प्रार्थना की जिसे वह ठुकरा न सके. शिवजी, कार्तिकेय, शिवगणों आदि के साथ बाणासुर के नगर के पहरेदार बन गए थे. बाणासुर ने जब श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध का हरण कर लिया था. श्रीकृष्ण अपनी सेना के साथ बाणासुर से युद्ध को आए तो उन्हें शिवजी अपनी सेना के साथ रखवाली करते दिखे.
भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच धोर संग्राम हुआ था. यह कथा मैंने आपको सुनाई है. सावन मास के पहले सोमवार को पुनः प्रभु शरणम् ऐप्प में लिखूंगा. आप प्रभु शरणम् ऐप्प तत्काल डाउनलोड कर लें जिसका लिंक यहीं पर नीचे में है.
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बाणासुर ने जिस पार्थिव शिवलिंग के पूजन से शिवजी को वश में कर लिया था उसकी महिमा और बताने की क्या आवश्यकता. अब जानते हैं कि पार्थिव लिंग का किस प्रकार निर्माण और पूजन करना चाहिए जिससे शिवजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं.
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