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भगवन शिव पार्वती को यह कहानी सुना ही रहे थे कि तभी धरती पर रात हो गयी. तीनों बहनें उस बच्चे को अपनी गोद में लिए हुए सो गईं. तीनों ने एक साथ एक सपना देखा.
उन्होंने देखा कि भगवान् शिव उनसे कह रहे हैं कि तुम अपने इस बच्चे से बार-बार पुत्रक, पुत्रक कहती हो, तो यह पुत्रक नाम से ही प्रसिद्ध होगा. हर दिन इसके सिरहाने एक लाख स्वर्णमुद्रा मिलती रहेंगी और आगे चल कर यह राजा बनेगा.
पुत्रक बड़ा होने लगा. एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रतिदिन मिलती रहीं. सुख के दिन लौट आये. पुत्रक अब राजा बन गया था. वह रोज ढेरों स्वर्णमुद्राएँ दान में देता था. धीरे धीरे यह बात हर और फैल गयी और पुत्रक की प्रसिद्धि भी.
ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि ये बात उसके भागे हुए पिता तथा उसके छोटे बड़े भाइयों तक भी पहुंची और वे अपनी ससुराल में लौट आये. कुछ दिन अपने पुत्र के वैभव का आनंद उठाते हुए सुख से रहे, पर शीघ्र ही उनके मन में फिर पाप जगने लगा.
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