शिवजी कर्मप्रधान देव हैं. सभी कर्मों को निर्विकार भाव से करने का आदेश देते हैं. यदि आप कर्मबंधन से बंधे होने के कारण व्यस्त हैं और विधिवत शिवजी का पूजन नहीं कर पा रहे तो निराश न हों. शास्त्रों में इसका सरलतम विकल्प बताया गया है- शिव मानस पूजन.
शिव मानस पूजन स्तोत्र की रचना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. इसमें पूजा की सामग्री मानसिक रूप से तैयार की जाती है. भाव ऐसा होता है कि यह सामग्री भक्त के पास मौजूद है. यात्रा में, नौकरी आदि के कारण, व्यापार अथवा अन्य कारणों से शिवजी का विधिवत पूजन नहीं संभव हो रहा तो सर्वोत्तम विकल्प है शिव मानस पूजन.
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कई शिवभक्तों के साथ समस्या आती है कि उन्होंने व्रत आदि तो रख लिया है किंतु नौकरी या काम की उलझन में या यात्रा में होने के कारण वे शिवजी की विधिवत पूजा नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में भक्त बड़ा परेशान हो जाता है, हृदय से दुखी हो जाता है.
संसार के सभी चर-अचर पदार्थ ईश्वर के बनाए हैं. उनका बनाया उनको ही समर्पित करते हैं हम. स्वयं हम भी तो उनके बनाए हैं तो क्या यह अच्छा नहीं कि स्वयं को ही समर्पित कर दें. यही सबसे उत्तम पूजन है. इसी भाव से यदि भक्त भगवान को भजने लगे तो वे सबसे जल्दी प्रसन्न होंगे. दाता दानी को हम मनुष्य क्या दे सकते हैं?
भगवान भोलेनाथ तो क्षण में प्रसन्न हो जाते हैं. भाव के साथ जो समर्पित करें स्वीकार लेते हैं. आपने भक्त भील की कथा पढ़ी होगी उसने तो मांस का भोग लगा दिया था और शिवजी उसे ही ग्रहण करने को प्रकट हो गए थे क्योंकि भक्त ने भगवान को भी अपने भाव से देखा था.
सृष्टि के जिन फल-फूल आदि को अन्य देव अस्वीकार कर देते हैं शिवजी सहज ही उसे स्वीकार कर लेते हैं. धतूरा, कनेर, मदार आदि अनेक फूल हैं जो शिवजी को अतिशय प्रिय हैं. साधनहीन होने पर भी समस्त विधि-विधान से शिव मानस पूजन के द्वारा पूर्ण पूजा कर सकते हैं.
शिव मानस पूजन शिवजी की भाव पूजा है. सुंदर भावनात्मक स्तुति से साधनहीन, सहायकहीन और विधिहीन होने पर भी पूर्ण पूजा हो सकती है. इसकी गिनती भी श्रेष्ठ पूजा में होती है.
शिव मानस पूजन स्तोत्र की रचना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. इसमें पूजा की सामग्री मानसिक रूप से तैयार की जाती है. भाव ऐसा होता है कि यह सामग्री भक्त के पास मौजूद है.
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शिव मानस पूजन कैसे करें?
सुखासन पर बैठें और ध्यान करें कि शिवजी कमल के आसन पर अभयमुद्रा में विराजमान हैं. बाईं ओर आदिशक्ति पार्वतीजी विराज रही हैं. चारों ओर खड़े ऋषिगण उनकी स्तुति कर रहे हैं. भगवान शिवजी गणों द्वारा घिरे हैं. सभी गण स्तुतिभाव में खड़े हैं. आप भी यथासंभव पूजन सामग्री के साथ शिव-पार्वती की वंदना के लिए वहां उपस्थित हैं.
इसके बाद मन से महादेव को मुक्तामणि से सुशोभितकर स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कराना चाहिए. यह सब आपको मन में ध्यान लगाकर कल्पना करनी है. इसके लिए आंख मूंद लें और ऐसी कोई तस्वीर जो आपने देखी हो उसका स्मरण करें तो यह सहज ही हो जाएगा.
फिर ऐसा विचार करें कि आप गंगाजल से शिवजी को स्नान करा रहे हैं. बिलकुल वैसे ही जैसे कभी पंडितजी ने पूजा के दौरान कराया है. यह सब पवित्र भाव में आपको मन से सोचना है.
ध्यान कर सोचें कि आपके पास कामधेनु के दूध बना का पंचामृत है जो आपने अपने प्रिय शिवजी के लिए बनाया है.
फिर जो भी वस्त्रआदि समर्पित करने की इच्छा होती हो वह मन से शिवजी को समर्पित कर दें.
फिर शिवजी से प्रार्थना करें- “हे भोलेनाथ, हे मेरे प्रभु जो मन से अर्पित किया उसे स्वीकार करें. प्रभु मेरी निद्रा को समाधि समझें. चलने-फिरने को अपनी परिक्रमा समझें और मैं जो भी बोल रहा हूं उसे अपनी स्तुति समझें. मेरे सभी कार्य आपकी आराधना के निमित्त होते हैं. अज्ञानता में जो अपराध हुए उन्हें क्षमा कर दें.”
इसके बाद शिव मानस स्तोत्र का मानस पाठ करना चाहिए. स्तोत्र संस्कृत और हिंदी दोनों में दिया जा रहा है.
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।।शिवमानस स्तोत्र।।
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नाना रत्न विभूषितं मृगमदा मोदांकितं चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम् ग्रह्यताम् ।।1।।
सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौवलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्तया प्रभो स्वीकुरु ॥2॥
छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणति: स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥3॥
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थिति:॥
संचार: पदयो: प्रदक्षिणविधि: स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ।।4।।
कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करूणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥5॥
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।।शिव मानस स्तोत्र का हिंदी भावार्थ।।
हे दयानिधे! हे पशुपते! हे देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए. हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं.
स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है. केसर-कस्तूरी-चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूँ. जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है. सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक मानसिक प्रकार से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप ग्रहण कीजिए.
मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, में खीर, दूध और दही सहित पाँच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें.
हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चँवर और पंखा झल रहा हूं. निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है. वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियाँ आपको प्रसन्नता के लिए की जा रही हैं. स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूँ. प्रभो! मेरी यह नाना विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें.
हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं. मेरी बुध्दि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं. मेरे प्राण आपके गण हैं. मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है. संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है. मेरी निद्रा आपकी ध्यान समाधि है. मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है. मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं. इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है.
हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं. वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए. हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।
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