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महादेव ने कहा- मैं किरात के भेष में जाकर अर्जुन से युद्ध करके उसकी योग्यता की परीक्षा करुंगा. देवी पार्वती ने कहा कि वह भी साथ चलेंगी. महादेव ने किरात का रूप धरा और पार्वती ने किरात-नारी का वेश धरा.
यह बात जब शिवगणों को मालूम हुई तो उन्होंने भी युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की और साथ चल पड़े. सभी किरात के भेष में इन्द्रनील वन की ओर चल पड़े.
इन्द्रनील पहुंचने पर माता पार्वती को एक विशाल शूकर दिखाई पड़ा. वह शूकर मूक नामक असुर था जिसे दुर्योधन ने अर्जुन की हत्या के लिए भेजा था. मूकासुर पर्वत शिखरों को उड़ाता, वन को छिन्न-भिन्न करता अर्जुन की ओर बढ़ा जा रहा था.
मूकासुर के उत्पात से वन में उपस्थित ॠषि-मुनि त्राहि-त्राहि करने लगे. उनकी चीख-पुकार से अर्जुन का ध्यान भंग हो गया. उन्होंने आंखें खोली और धनुष पर बाण चढ़ा लिया.
तभी किरात भेषधारी भगवान शिव अपने धनुष पर बाण चढ़ाए उसे आते दिखाई दिए. अर्जुन को शूकर का निशाना बनाते देख शिव ने कहा- ठहरो. इस शूकर पर बाण मत चलाना. यह शिकार मेरा है. मैंने बहुत देर तक इसका पीछा किया है.
अर्जुन ने कहा- किरात, शिकारी भीख नहीं मांगा करते. तुम इसे मार सको तो ले जाओ. दोनों ने तीर चलाए. शूकर के शरीर में एक साथ दो तीर आ घुसे. एक किरात भेषधारी शिव का और दूसरा अर्जुन का.
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