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ब्रह्मा का कार्यालय बहुत बड़ा था. पूरी सृष्टि के रचने, बनाने का काम काज यहीं से चलता था. स्वर्ग में स्थित उनके महल में उनका दरबार भी बहुत बड़ा था. दरबार में अप्सरा सेविकाएं भी हजारों की संख्या में थीं.

इन्हीं सेविकाओं में से एक अप्सरा थीं पुंचिकस्थला. पुंचिकस्थला निष्ठावान और काम के प्रति बड़ी ईमानदार थी. एक दिन उनकी असाधारण सेवा से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा.

अप्सरा ने सकुचाते हुए कहा कि उस पर एक तपस्वी साधु का श्राप है. यदि वरदान स्वरूप मुझे उस श्राप से मुक्ति मिल जाये तो. ब्रह्माजी ने उस श्राप के बारे में पूछा तो अंजना ने एक पुरानी कहानी बताई.

अंजना ने कहा- बाल्यकाल की बात है. मैं वन में घूम रही थी. बचपन की शरारत में एक सुनसान जगह पर मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा. मेरे लिए यह एक बड़ी अचरज वाली बात थी.

नासमझी में मैंने मजाक मजाक में ही उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए. मुझे क्या पता था वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु हैं जो वानर रूप में तप कर रहे हैं.

मेरे इस कार्य से साधु की कठोर तपस्या भंग कर दी थी. तपस्वी बहुत ज्यादा क्रोधित हो गये. उन्होंने मुझे शाप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं बंदरिया बन जाऊंगी.

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