एकादशी व्रत आपने किया हो या किसी को करते देखा हो पर एकादशी व्रत की वैज्ञानिकता को जानेंगे तो आपको गर्व होगा हिंदू व्रत परंपराओं पर. एकादशी के बारे में यह जानकारी यदि अच्छी लगी हो तो फेसबुक की हमारी पोस्ट शेयर करना न भूलिएगा.

एकादशी व्रत-लक्ष्मी-नारायण-हरिशयनी-देवशयनी-एकादशी

मास के हर पक्ष में एकादशी व्रत होता है. एकादशी में श्रीहरि की पूजा आराधना की जाती है. इसका बड़ा माहात्म्य कहा गया है. लोग अक्सर पूछ बैठते हैं कि हिंदू धर्म में इतने व्रत क्यों है, कई बार समझ नहीं आता कि क्या उत्तर दे. जो प्रश्न आज तक असुविधा का कारण बनता था आज से वह आपको गर्व का आभास कराएगा. एकादशी व्रत या हिंदू धर्म के व्रत के पीछे कितना बड़ा विज्ञान छुपा है उसे आम उदाहरणों से समझाने का प्रयास कर रहा हूं. इसे धैर्य से पढ़ेंगे.

बात वहीं से शुरू करनी चाहिए जहां से उद्गम होता है. एकादशी व्रत का उद्गम पुराणों से होता है इसलिए मैं सबसे पहले पुराण का प्रसंग बताता हूं फिर उसके पीछे के विज्ञान से परिचित कराऊंगा जिसे सुनकर आपका सीना गर्व से फूल जाएगा.

पद्म पुराण का एक प्रसंग है-
जैमिनी ऋषि ने महर्षि वेद व्यासजी से पूछा कि एकादशी व्रत क्यों करना चाहिए? इसके उत्तर में व्यासजी ने उन्हें एक छोटा सा प्रसंग सुनाया-भगवान श्रीहरि ने सृष्टि व्यवस्था में अनुचित कार्य का दंड देने के लिए एक पापपुरुष बनाया. उस पापपुरुष को मनुष्य के हर बुरे कार्य के लिए दंडित करने की जिम्मेदारी दी गई थी.

श्रीहरि एक बार यमलोक आए तो वहां देखा कि असंख्य लोग दंड भुगत रहे हैं. उन्हें ऐसी आशा न थी कि मनुष्य इतने पाप करता जाएगा और उसके लिए दंडित होता रहेगा. नारायण को दया आ गई.

भगवान ने अपनी आत्मा से एकादशी को प्रकट किया उसे वरदान दिया कि जो एकादशी के दिन विधि-विधान से व्रत करेंगे उनके बहुत से पापों का नाश हो जाएगा. उन्हें ऐसी कठोर यातनाएं न सहनी होंगी और वे मोक्ष को प्राप्त करेंगे. एकादशी के प्रभाव से सभी मोक्ष पाने लगे.

पाप पुरुष श्रीहरि के पास दौड़ा-दौड़ा गया और अपनी पीड़ा सुनाई कि प्रभु आपने ही मुझे प्रकट किया, आपने ही कार्य दिया और अब आपने ही मुझे व्यर्थ भी बना दिया. सब तो एकादशी के प्रभाव से मोक्ष पा रहे हैं, मैं अब क्या करूं?

श्रीहरि बोले- बात तो तुम्हारी ठीक है किंतु एकादशी को भी मैंने ही यह व्यवस्था दी है. अब उसमें भी फेर-बदल कर दूं तो कल को उसकी भी स्थिति तुम्हारे जैसी होगी तो उसे कैसे संतुष्ट करूंगा. मेरे लिए तो धर्मसंकट है.

पापपुरुष ने कहा- प्रभु एक उपाय है जिससे हमारा कार्य भी हो जाएगा और आपका धर्मसंकट भी टल जाएगा. एकादशी के दिन मुझे अनाज, मटर, मसूर की दाल, बैंगन, मूली, मांस-मदिरा एवं समस्त गरिष्ठ भोजन में वास दे दीजिए. जो इस दिन इन्हें ग्रहण करेगा उन पर मेरा अधिकार हो जाएगा. मैं उनकी बुद्धि भ्रष्ट करूंगा और वे पाप की ओर उन्मुख होंगे. इस प्रकार मैं भी बेकार नहीं रहूंगा और आपसे शिकायत नहीं करूंगा.

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श्रीहरि ने उसे अनुमति दे दी. इस कारण एकादशी को गरिष्ठ पदार्थों के ग्रहण करने से मनाही है.

यह तो है एकादशी व्रत के पीछे का धार्मिक-आध्यात्मिक पक्ष पर मैंने तो आपसे वैज्ञानिक पक्ष बताने की बात कही थी.

सनातन धर्म को विज्ञान पुष्ट बनाए रखने के लिए ऋषि-मुनियों ने विज्ञान के अद्भुत रहस्यों को परंपराओं में बांध दिया ताकि लोग उसका अनुसरण करके स्वतः लाभान्वित होते रहें. पापपुरूष और श्रीहरि के इस संवाद का विश्लेषण अब वैज्ञानिक आधार पर करेंगे जिसे पढ़कर आप वाह कह उठेंगे. यही से मिलेगा इसका वैज्ञानिक पक्ष.

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5 COMMENTS

  1. As i too take fasting at monday worshipping lord shiva (bholenath), I personally find this site very useful which provides a lot of information concerned to our religion it’s importance and value which were and are unknown to me..
    So i would like to thank from my bottom heart.

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