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यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा- भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है. पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है.
सावित्री को वापस भेजने के लिए यमराज ने उससे एक और वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने मांगा-मेरे ससुर का राज्य छिन गया है. उसे पुन: प्राप्त कर सकें और धर्मपरायण बने रहें. यमराज ने तथास्तु कहकर सावित्री को चले जाने के लिए कहा.
सावित्री ने कहा- प्रभु मैं आपसे कुछ भी याचना नहीं कर रही, बस अपने पति के मार्ग का अनुसरण कर रहीं हूं. अर्धांगिनी को पति के मार्ग का अनुसरण कर चाहिए मुझे यही सिखाया गया है. वे यमलोक दे द्वार तक पहुंच गए.
यमराज ने कहा- देवी आप पति के प्राणों के अलावा जो भी वर मांगना है मांग लो और लौट जाओ क्योंकि इस सीमा के आगे जीवित प्राणियों के प्रवेश की मनाही है.
इस बार सावित्री ने मांगा- हे धर्मराज आप मुझे अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान दीजिए. यमराज ने तथास्तु कह दिया और चलने को तैयार हुए.
सावित्री अब भी उनके पीछे पीछे चलती रही. अब यमराज का धैर्य जवाब दे रहा था. वह क्रोधित होने लगे. यमराज को क्रोधित होते देख सावित्री उन्हें नमन किया.
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