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उसने महात्माजी के पैर पकड़ लिए और कहा कि आपने आंखें खोल दीं. समुद्री लुटेरे हर साल मेरा बहुत सारा धन लूट लेते हैं शायद इसी करनी का फल है. उसने बेटे को महात्माजी के साथ भेज दिया और कहा आज से व्यापार के गुर इनसे सीखो.

मित्रों, हम परिश्रम से आजीविका जुटाने वाले रिक्शाचालकों, मजदूरों से कितना मोलभाव करते हैं. उन्हें दबाने की कोशिश करते हैं लेकिन बड़े मॉल में जो मूल्य होता है उसे सहर्ष दे देते हैं यह जानते हुए भी कि अनुचित कीमत ली जा रही है.

उस समय हमारा यह ज्ञान कहां जाता है कि हमारे साथ शोषण हो रहा है. अपने से कमजोर को मत दबाइए, उसे प्रेम देकर देखिए आपका भक्त हो जाएगा. किसी श्रमिक ने कभी 10 रुपए ठग लिए तो यह सोचिए कि आपको आज आपको होशियार रहना है किसी बड़े ठगे से.

जिंदगी का यह नजरिया शायद गले न उतरे लेकिन कुछ दिनों के लिए आजमा कर ही देख लीजिए, शायद आपका आत्मविश्वास बढ़े और करूणा का भाव आए. यकीन मानिए आपके इस परिवर्तन को आपके करीबीजन महसूस करेंगे.

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संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
प्रभु शरणम्

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