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मेरा पिता कौन हैं? माता कौन हैं? ठीक प्रकार से इसका भी ठिकाना नहीं. कोई कहता है देवकी-वासुदेव का पुत्र है, कोई कहता यशोदा-नंदबाबा का पुत्र है. मैं तो रूप में भी काला हूं.

जो निर्धन दुखियारे हैं वे ही मेरा नाम लेते हैं. हम उनसे ही प्रेम करते हैं और वे लोग भी हमसे प्रेम करते हैं. जो स्वयं को धनवान समझते है वे मुझे प्रेम नहीं करते.  देवी रूक्मिणी आपने निर्णय में चूक कर दी. भगवान ने चुटकी ली और मुस्काने लगे.

अब रुक्मिणीजी की बारी थी. वह बोलीं- प्रभु! बिलकुल सत्य कहा आपने.  आप समुद्र में छिपकर रहते हैं. प्रभु! ह्रदय में तो काम,  क्रोध,  मद,  मोह, लोभ आदि बैठे हैं. आत्मा ही समुद्र है आप तो उस आत्मा रूपी समुद्र में रहते हैं.

रूक्मिणी आगे बोलीं- आपने कहा आपके वेष का ठिकाना नहीं, आपके माता-पिता का ठिकाना नहीं. तो प्रभु! आप तो जगत के पिता हैं. आपके पिता कौन हो सकते है!

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