महादेव और विष्णु की पूजा करते समस्त देवतागण
P

किसी स्त्री को असमय वैधव्य झेलने का शास्त्रों में एक कारण बताया गया है. अपवित्र अवस्था में कोई स्त्री मांगलिक कार्यों में शामिल होती है तो उस दोष के कारण उसे विधवा होने का शाप मिलता है. इसकी मुक्ति का रास्ता है ऋषि पंचमी व्रत.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. 3 सितंबर 2019 को यह व्रत रखा जाएगा. चूंकि शास्त्रों में लगातार व्रत का विधान नहीं है. जिन स्त्रियों ने कल तीज का व्रत रखा हो, वे इस कथा को पढ़-सुन लें और किसी अन्य स्त्री को सुना दें. विधवा स्त्रियों को प्रणाम करके उन्हें उत्तम भोजन आदि देकर आशीर्वाद लें.

अखंड सुहागिन होना किसी विवाहिता के लिए सबसे बड़ा वरदान है. बहुत सी स्त्रियों को असमय वैधव्य झेलना पड़ता है. बहुत कम उम्र में वे विधवा हो जाती हैं. शास्त्रो में इसका एक कारण बताया गया है. कोई स्त्री अपवित्र अवस्था यानी रजस्वला होकर भी यदि किसी मांगलिक कार्य में शामिल हो जाती है तो उस दोष के कारण उसे वैधव्य का शाप मिलता है. रजस्वला स्त्री से भूलवश हुए अपराध से मिले  शाप की मुक्ति का मार्ग है ऋषि पंचमी व्रत.

ऋषि पंचमी
धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-

[sc:fb]

प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना  पाना चाहते हैं तो Prabhu Sharnam वेबसाइट को सब्सक्राइव कर लें. वेबसाइट ओपन होने के बाद आपको एक बेल आइकॉन(घंटी) दिखती होगी उसमें हां के विकल्प पर क्लिक कर देना है. जल्दी ही आपको हर नए पोस्ट की सूचना सबसे पहले मिलने लगेगी. इस तरह आपको सारे पोस्ट मिलते रहेंगे.

 

भाद्रपद शुक्लपक्ष की पंचमी ऋषि पंचमी कहलाती है. ऋषि पंचमी का व्रत ज्ञात-अज्ञात पापों का नाश करने वाला होता है. कई बार ऐसा होता है कि रजस्वला स्त्री से अंजाने में पूजन सामग्री आदि का स्पर्श हो जाता है. यह अपराध स्त्रियों से अंजाने में हो जाता है परंतु अपराध जाने हो या अंजाने में, अपराध ही है. अंजाने में हुए अपराध के लिए शास्त्रों में निवारण मार्ग बताया गया है. इस व्रत को सभी वर्णों की स्त्रियां करती हैं.  व्रत में सप्तर्षियों के सहित देवी अरुन्धती का पूजन होता है. इसीलिए इसे ऋषि पंचमी कहते हैं.

इस पोस्ट में आप जानेंगे-

  • अंजाने में स्त्रियों से हुए पाप से मुक्ति कराने वाली ऋषि पंचमी व्रत की महिमा
  • ऋषि पंचमी व्रत की विधि
  • ब्रह्मांड पुराण में वर्णित ऋषि पंचमी व्रत की कथा
  • ऋषि पंचमी की एक अन्य प्रचलित कथा

[irp posts=”7365″ name=”गणेश चतुर्थी क्यों है कलंक चतु्र्थी, कलंक से कैसे हो मुक्ति?”]

ऋषि पंचमी व्रत की विधि

  • इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह प्रातः काल से मध्यान्ह के समय किसी नदी या तालाब पर जाएं.
  • वहां अपमार्गा (चीड़चिड़ा) के लकड़ी से दातून करें, मिट्टी लगाकर स्नान करें.
  • इसके बाद पंचगव्य ( दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र) से पवित्र हों.
  • तत्पश्चात घर आकर शास्त्र और विधान से किसी ब्राहमण से पूजन आदि कराकर कथा सुनें.
  • इस व्रत में फलाहार किया जाता है लेकिन नमक खाना वर्जित हैं. प्रायः लोग दही और साठी का चावल खाते हैं.
  • खेत से जुते हुए अन्न का सेवन भी वर्जित है.
  • दिन में एक बार ही भोजन का विधान है. ब्राह्मण भोजन कराकर प्रसाद पाना चाहिए.
  • व्रत की अवधि कम से कम सात साल की होती है. लगातार सात साल ऋषि पंचमी व्रत करने के बाद उद्यापन भी किया जा सकता है.
  • सात साल तक लगातार व्रत के बाद आठवें वर्ष सप्तर्षियों की सोने, चांदी या अन्य कीमती धातु की प्रतिमा बनवाकर दान करके व्रत का उद्यापन किया जा सकता है. बहुत सी स्त्रियां इसे आजीवन भी करती हैं.
  • इस दिन सप्त ऋषियों का आह्वान करके उनसे सभी ज्ञात-अज्ञात पापों के हरण का वरदान मांगना चाहिए.

[irp posts=”3938″ name=”यह कथा दिलाती है कलंक चतुर्थी के दोष से मुक्ति”]

ऋषि पंचमी पर सप्तर्षियों का आह्वान कैसे करें-

श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़कर अपने इष्ट का ध्यान कर लेने के बाद सप्तर्षियों का आह्वान इस प्रकार करना चाहिए.

1 – कश्यपाय नमः
2 – अत्रये नमः
3 – भारद्वाजाय नमः
4 – विश्वामित्राय नमः
5 – गौतमाय नमः
6 – जम्दग्नये नमः
7 – वाशिष्ठाये नमः

इसके बाद वशिष्ठ की पत्नी माता अरुंधति का स्मरण करते हुए आह्वान करना चाहिए.  इसके लिए अरुन्धत्ये नमः के उच्चारण करें और फिर ऋषि पंचमी की कथा सुननी चाहिए.

[irp posts=”609″ name=”नौकरी रोजगार आदि के विघ्ननाश करता है श्री गणपत्यअथर्वशीर्षम् मंत्र”]

ब्रह्मांड पुराण में वर्णित ऋषि पंचमी की कथा

सतयुग में श्येनजित नामक एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में सुमित्र नामका एक ब्राह्मण रहा करता था. वह वेदों में पारंगत था. वह ब्राहमण खेती द्वारा जीवन निर्वाह व् परिवार का भरण–पोषण करता था.

उसकी पत्नी जयश्री सती साध्वी थी. वह खेती के कार्यों में भी अपने पति का सहयोग करती थी. एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उसने घर का सब कार्य किया और पति का स्पर्श भी कर लिया. देवयोग से पति तथा पत्नी की मृत्यु एक साथ हुई.

रजस्वला अवस्था में स्पर्श आदि का विचार न करने से स्त्री कुतिया और पति ने बैल की योनि प्राप्त की परन्तु पूर्व जन्म में किए गए धार्मिक कर्मों के कारण पूर्वजन्म की स्मृति उन्हें बनी रही. संयोगवश इस जन्म में भी वे अपने ही घर में रह रहे थे. उनके पूर्वजन्म के पुत्र और पुत्रवधू भी साथ रह रहे थे.

[irp posts=”7305″ name=”किस मनोकामना के लिए पूजें कौन सा कृष्ण स्वरूप”]

ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था. वह भी पिता की भांति वेदों का विद्वान था. पितृपक्ष में उसने अपने माता– पिता के श्राद्ध के उद्द्देश्य से पत्नी से कहकर खीर बनवाई और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया. उधर एक सर्प ने आकर उस खीर को विषाक्त कर दिया.

कुतिया बनी ब्राह्मणी यह सब देख रही थी. उसने सोचा यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो मर जायेंगे और सुमति को पाप लगेगा. पूर्वजन्म का उसका पुत्र ऐसे पाप का भागी न बने.

ऐसा विचारकर उसने खीर के बर्तन में मुंह लगाकर उलट दिया. सुमति की पत्नी बहुत क्रोधित हुई और चूल्हे से जलती हुई लकड़ी निकाल कर उसकी पिटाई कर दी. उस दिन उसने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया.

रात्रि में कुतिया ने बैल से सारी घटना बताई. बैल ने कहा आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया, जबकि सारे दिन मुझसे खेतों पर काम लिया. सुमति हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध कर रहा है और हमें ही भूखों मार रहा है. इस तरह से हम लोगों के भूखे रह जाने से तो इनका श्राद्ध करना व्यर्थ हो जाएगा.

हिंदू धर्म से जुड़ी शास्त्र आधारित ज्ञान के लिए प्रभु शरणम् से जुड़ें. सर्वश्रेष्ठ हिंदू ऐप्प प्रभु शरणम् फ्री है. तकनीक के प्रयोग से सनातन धर्म के अनमोल ज्ञान को प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से इसे बनाया गया है. आप इसका लाभ लें. स्वयं भी जुड़े और सभी को जुड़ने के लिए प्रेरित करें. धर्म का प्रचार सबसे बड़ा धर्मकार्य है
Android मोबाइल ऐप्प डाउनलोड करने के लिए यहां पर क्लिक करें

सुमति द्वार पर बैठा इन दोनों की वार्तालाप सुन रहा था. उसे पशुओं की बोली भली-भांति आती थी. उसने जब ये बातें सुनी तो उसे बहुत दुःख हुआ कि मेरे माता पिता इस निष्कृष्ट योनि में जन्मे हैं.

वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के पास पहुंचा और सारा वृतान्त सुना कर अपने माता-पिता के इस योनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा. ऋषि ने ध्यान और योगबल से सारा वृतांत जान लिया.

ऋषि ने सुमति से कहा तुम भाद्रपद शुक्ल पंचमी का व्रत करो. उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता– पिता को इस पाप से अवश्य मुक्ति मिल जायेगी. माता-पिता भक्त सुमति ने ऋषि पंचमी का व्रत किया.

[irp posts=”7253″ name=”कंगाल बना देंगे आपको दूसरों के ये सात सामान”]

जिसके प्रभाव से उसके माता पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गई. यह व्रत शरीर के अशुद्ध अवस्था में किए गए स्पर्शास्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता है.

ऋषि पंचमी की एक अन्य व्रत कथा, इसे भी जरूर पढ़ना चाहिए.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here