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प्रभु श्रीराम और रावण से जुड़ा एक प्रसंग सुनाने जा रहे हैं जो महर्षि कंब द्वारा लिखी रामायण में है. यह कथा बाल्मीकि रामायण या रामचरितमानस में नहीं है. सत्य क्या-असत्य क्या, प्रभु की लीला तो प्रभु ही जानें. हम तो बस आपके सामने दक्षिण भारत का एक प्रचलित प्रसंग रख रहे हैं.
रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं ज्योतिष का भी प्रकांड विद्वान था. उसे भविष्य का पता था औऱ वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए संभव ही नहीं.
लंका विजय के लिए श्रीराम ने शिवलिंग स्थापना की निर्णय लिया लेकिन संकट यह आया कि विधिपूर्वक शिवलिंग पूजन के लिए आचार्य कहां से आएं. रावण से बेहतर शिवभक्त और कर्मकंडी कोई नजर नहीं आता था.
श्रीराम ने हृदय की विशालता का परिचय देते हुए रावण को ही आचार्य बनाने का निर्णय किया. आचार्य को निमंत्रण देकर बुलाया जाता है लेकिन श्रीराम स्वयं नहीं जा सकते थे क्योंकि वह राजा थे. राजा युद्ध से पूर्व स्वयं नहीं जा सकता.
फिर श्रीराम का प्रतिनिधि बनाकर किसे भेजा जाए. हनुमानजी लंका जला आए हैं, अंगद भी रावण का अपमान कर आए हैं. सबसे समझदार और वयोवृद्ध जामवंतजी को इसके लिए चुना गया. जामवंतजी रावण को आचार्यत्व का निमंत्रण देने लंका गए.
जामवन्त जी विशालकाय आकार के थे. आकार में वह कुम्भकर्ण से तनिक से ही ही छोटे थे. पहले हनुमान, फिर अंगद और अब जामवन्त. यह समाचार लंका में मन की गति से फैला. जामवंतजी के आकार भय से सब राक्षस अपनी जगह छुप गए.
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