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आते समय उससे वह थाली और अग्नि की सुरक्षा में भूल हुई. वह थाली शमी वृक्ष और पवित्र अग्नि अश्वत्थ यानी पीपल बन गए. शमी के गर्भ में अश्वत्थ स्थित हो गए. पुरुरवा इससे विक्षिप्त जैसा हो गया.
उसको बेचैन देखकर गन्धर्वों को दया आ गई. उन्होंने कहा कि तुम्हारी अज्ञानता के कारण ही यह सब हुआ. अब यज्ञ करके प्राप्त करने का प्रयास करो. गन्धर्वों ने उसे यज्ञ की विधि भी बताई.
पुरुरवा ने अश्वत्थ की अरणियों के मंथन से यज्ञ की अग्नि प्राप्त की. यज्ञ करके वह गन्धर्व बना. पुरुरवा के पौरुष से अग्नि तीन पुण्य अंशों में स्थापित हुई- आह्वनीय अग्नि, गार्हपत्य अग्नि और दक्षिणा अग्नि.
गन्धर्वों के वरदान से वह सूर्य के समकक्ष प्रतिष्ठित हुआ. उर्वशी पवित्र उषा जल यानी ओसविंदु के समान और उन्हें वांछित पुत्र आयु कुमार के रूप में प्राप्त हुआ.
पुरुरवा ने उर्वशी के साथ जो संतान उत्पन्न कर वंशवृद्धि की उसी वंश में गाधि नामक राजा हुए. सत्यवती उसी गाधि की पुत्री थी. मरीच के पुत्र ऋचीक सत्यवती ने सत्यवती से विवाह किया और फिर जमदग्नि के पुत्र परशुराम का जन्म हुआ था.
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