उस दिन राजा के मन में आत्मग्लानि तो हुई फिर भी पुनः परोपकार की भावना के साथ दूसरों की सेवा में लग गए. कुछ दिन बाद राजा फिर वन की तरफ निकले तो उन्हें उसी देव के फिर से दर्शन हुए.
इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. लेकिन इस पुस्तक का रंग और आकार पहले वाली पुस्तक से अलग था. यह पुस्तक पहली से काफी छोटी भी थी. राजा पूछा- प्रभु आज कौन सा बहीखाता आपने निकाला है?
देव ने कहा- इसमें उनका नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं. राजा ने कहा- कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग. निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे. क्या इसमें कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है?
देवता ने बहीखाता खोला. पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था. राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- महाराज, मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है. मैं तो मंदिर भी कभी-कभार ही जाता हूं?
देव ने कहा-“राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जो निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो परोपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं. जो मुक्ति का लोभ त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानों की सेवा करते हैं, उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है.
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Jai shri ram