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प्रेत के मुंह से ऐसे ज्ञान की बात सुनकर राजा को बेहद आश्चर्य हुआ.

उसने कहा- हे प्रेत! मुझे तुम्हारे बारे में जानने की जिज्ञासा हो रही. अपने बारे में विस्तार से कहो.

तब प्रेत ने कहा- हे राजन, मृत्यु से पूर्व मैं विदिशा नामक नगर में रहता था. वैश्य जाति में उत्पन्न हुआ था. उस जन्म में मेरा नाम सुदेव था. मैं खूब दान करता था. देवताओं, पितरों को नियम से हविष तर्पण आदि देता था जिससे वे संतुष्ट रहते थे. किन्तु मेरी कोई संतान न होने से मेरे सभी पुण्यकार्य निष्फ़ल हो गए.  मेरे मित्र, बन्धु-बान्धवों किसी ने भी मेरा और्ध्वदैहिक संस्कार नहीं किया इस कारण मेरा प्रेतत्व स्थिर हो गया. यदि उन लोगों ने तर्पण आदि कर दिए होते तो मैं इस योनि से छूट जाता.

हे राजन! एकादशा, त्रिपाक्षिक, षड़मासिक, वार्षिक तथा मासिक जो श्राद्ध होते हैं, इनकी कुल संख्या सोलह है. जिस मृतक के लिए ये श्राद्ध नहीं किए जाते उसका प्रेतत्व अन्य सैकडों श्राद्ध करने पर भी नहीं जाता.

इस संसार में राजा को सभी वर्णों का बन्धु कहा गया है इसलिए आप मेरा संस्कार करके मुझे इस प्रेतत्व से मुक्ति प्रदान कराएं. इसके लिए मैं आपको ये मणि देता हूं. हे राजन, मेरे सपिण्डों और सगोत्रों ने मेरे लिए वृषोत्सर्ग नहीं किया.

बछिया से शादी कराकर विधि विधान से सांड की पूजा करके, उस पर त्रिशूल आदि के उत्तम पवित्र निशान बनाकर उसे छुट्टा छोड़ने की वृषोत्सर्ग क्रिया न करने के चलते मैं प्रेतयोनि में भूख-प्यास से बेहाल रहता हूं. इसलिए मेरा शरीर विकृत हो गया है. हे राजन! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि प्रेतत्व के इस कष्ट से आप मेरा उद्धार कराएं.

राजा ने उसे भरोसा दिलाया कि वह उसे प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने वाले कार्य करेगा. राजा को थोड़ी जिज्ञासा हुयी.

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उसने पूछा- मुझे यह जानने की इच्छा है कि कोई मनुष्य किस प्रकार यह जान सकता है कि उसके कुल का भी कोई प्राणी प्रेत हो गया है? वह इस प्रेतत्व से मुक्त कैसे हो सकता है?

प्रेत ने बताया- हे राजन, लिंग और पीडा से प्रेत योनि का पता चलता है. मैं आपको उन पीड़ाओं के बारे में बताऊंगा जिससे पता चलता है कि प्रेत द्वारा उत्पन्न कुछ पीडाओं और लक्षणों को मैं आपको बता रहा हूं जिससे यह संकेत मिलता है कि उसके कुल का कोई प्रेत हो गया है.

अगले पेज पर जानिए प्रेत पीड़ा के क्या लक्षण बताए गए हैं गरूड़ पुराण.

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2 COMMENTS

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