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राम ने ऋषि भृगु की परिक्रमा कर उनका यशोगान किया और वहां से हिमालय के लिए चल पड़े. रास्ता लंबा था. मार्ग में आने वाले समस्त तीर्थों का दर्शन करते ऋषि मुनियों के आश्रम में शिवोपासना के सूत्र सीखते, अंतत: वह हिमवान पर्वत पहुंच गए.
हिमवान पर्वत पर वेगवती नदियां, सघन वन उन वनों में शेर, बाघ, रीछ, भालू और ढेरों हिंसक जानवरों की भरमार था. राम ने एक स्थान को चुना और वहां आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे. उन्होंने शाक तथा मूल खाकर तपस्या आरंभ की.
वर्षा और हिमपात में भी अपने स्थान पर अडिग होकर तप करते. शीतऋतु में जल के भीतर खड़े होकर आराधना करते और गर्मियों में पाँच प्रकार की अग्नि के मध्य में स्थित होकर आराधना करते रहते.
वर्षों तक तपस्या करने के बाद उन्हें ध्यान में भगवान शिव के साक्षात दर्शन होने लगे. उनकी कठोर तपस्या की चर्चा हिमवान के अन्य ऋषि-मुनियों से होती देवताओं तक पहुंच गयी.
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