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उन्होंने शतानंद नामक ब्राह्मण की सत्यनारायण-पूजा की प्रसिद्धि भी सुनी. कुछ ने तो यहां तक कहा कि इस व्रतोपवास तथा पूजन के अनुसरण से मनुष्य न मात्र शील व धर्म से समृद्ध हो जाता है, अपनी हारी लड़ाई तक जीत जाता है.

चन्द्रचूड भगवान सत्यनारायण की पूजा करने वाले शतानंद के पास गये और उनके चरणों पर गिर कर उनसे सत्यनारायण-पूजा की विधि पूछी तथा अपना राज पाट गंवाने की कथा भी बतलायी.

चंद्रचूड़ ने कहा- हे ब्रह्मन! लक्ष्मीपति भगवान जनार्दन जिस व्रत से प्रसन्न होते है, पाप के नाश करने वाले उस व्रत को बतलाकर आप मेरा उद्धार करें.

शतानंद ने कहा– राजन ! लक्ष्मी पति भगवान को प्रसन्न करने वाला सत्यनारायण नामक एक श्रेष्ठ व्रत हैं, जो समस्त दुःख-शोक इत्यादि को नष्ट करने वाला, धन-धान्य को बढाने वाला, सौभाग्य और सन्तति को देने वाला तथा सर्वत्र विजय-दिलाने वाला है.

राजन ! जिस किसी भी दिन प्रदोषकाल में इनके पूजन आदि का आयोजन करना चाहिये. केले के तनों से बने खम्भों पर एक-एक मंडप की रचनाकार उसमें पाँच कलशों की स्थापना करनी चाहिए और पांच ध्वजाएं भी लगानी चाहिए.

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