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दूसरा प्रेत सूचीमुख बोला- मैं उस समय एक बलिष्ठ क्षत्रिय युवक था. एक ब्राह्मणी अपने पांच वर्षीय एकलौते पुत्र के साथ तीर्थस्नान का लाभ लेने भद्रवट गयी. मैं बड़ा दबंग और लुटेरा था और रास्ते चलते लोगों का सामान छीन लिया करता था.
मैंने उस ब्राह्मणी के लडको जोर का घूंसा मारा और दोनों के वस्त्र और खाने का सामान छीन लिया. प्यास से व्याकुल और सर पर वार से चकराया वह लडका जब अपनी माता से लेकर जल पीने को मांगने लगा तो मैंने डपट दिया.
भयानक डपट सुनकर वह बालक भय से बुरी तरह सहम गया. मैंने उसका जलपात्र उससे छीन लिया. उसमें थोडा सा ही जल बचा हुआ था. सारा जल मैंने ही पी लिया. इस तरह डर और प्यास से व्याकुल उस बालक की कुछ ही देर में मृत्यु हो गयी.
अपनी आंखों के सामने अपने प्यारे पुत्र को दम तोड़ते देख उसकी मां ने भी पास के कुएं में कूदकर जान दे दी. हे ब्राह्मण श्रेष्ठ इस पाप से मैं प्रेत बना. इस पाप के चलते पहाड़ जैसा शरीर होने पर भी मेरा मुख सुई की नोक के बराबर ही है.
मैं बलवान हूं. छीन झपटकर भोजन आसानी से प्राप्त कर लेता हूं. पर सुई के छेद जैसे मुख से उसको खाने में असमर्थ हूं. भूख से व्याकुल बालक का भोजन छीनकर मैंने उसका मुंह बन्द किया था. इससे मेरा मुंह सुई के नोक जैसा हुआ और मुझे सूचीमुख कहते हैं.
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