जीवन जीना एक कला है. इसे जो सीख लेता है वह उम्र को जीत लेता है. एक जीवन में न जाने कितने जीवन जी लेता है. छोटी सी पोस्ट आपको जिंदादिल बनाएगी. जीवन को नए अंदाज में जीने की इच्छा जगाएगी. नवजीवन देगी.

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जीवन का लुत्फ तो वही ले पाते हैं जो इसे भरपूर जी पाते हैं. भरपूर जीने का अर्थ यह नहीं कि सौ साल का हो जाना. बिस्तर पर पड़े रहें और सौ साल जीएं तो क्या फायदा? स्वस्थ रहें लेकिन मस्त न रहें तो जीवन कितना भी मिल जाए क्या फायदा? जीवन एक कोरा कैनवास है. इसमें हम अपनी पसंद के रंग भरकर रंग-बिरंगा भी बना सकते हैं या मुर्दादिल रहके काला कर सकते हैं. आप सोचिए आपको कौन सा रंग पसंद है. सरस जीवन ही नवजीवन है.

छोटी सी पोस्ट आपके दिमाग में यदि उथल-पुथल मचाए तो समझिएगा आपमें उमंग बाकी है, आपमें नवजीवन बाकी है. बस थोड़ी सी कला सीख लें तो एक ही जीवन में कई जीवन जी लेंगे. यही नवजीवन है. ध्यान से अंत तक पोस्ट को पढ़िएगा. बात दिल को छू जाए तो फेसबुक पोस्ट को शेयर करना मत भूलिएगा. आपसे पुरस्कार स्वरूप इसी की आशा रखता हूं मैं. शुरू करते हैं नवजीवन स्टोरी-

एक बगीचे में एक छोटा सा घास का फूल दीवार की ओट में ईटों में दबा हुआ जीता था. आंधी तूफान आने पर भी उसे कोई नुकसान न होता क्योंकि वह ईटों की आड़ में सुरक्षित रहता. गर्मियों में जब तपता सूरज हर चीज को जला देने को आमाद रहता, तब भी उसकी तपिश फूल को नहीं सता पाती थी. वह ईटों की आड़ में जो रहता था.

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कितनी भी बारिश हो जाए उस फूल का बाल बांका न होता क्योंकि वह तो जमीन से चिपका हुआ था. देखा जाए तो घास का फूल था तो बड़े मजे में, पर उसके मन की पूछो तो वह बड़ा दुखी था.

कारण, उसके पास में ही गुलाब के फूल खिले थे. गुलाब को सब देखते थे, सब ललचाते थे. गुलाब इतराता भी था पर घास के फूल को कौन पूछे! बस यही टीस उसे खाए जा रही थी.

एक रात घास के फूल ने परमात्मा से प्रार्थना की.

उसने फरियाद लगाई- हे प्रभु आखिर कब तक मैं घास का फूल ही बना रहूंगा? मैंने किसी का आज तक कुछ नहीं बिगाड़ा. सुना है आप मेरे जैसों के एकमात्र सहारे है. अगर आपकी जरा भी मुझ पर कृपा है तो मुझे गुलाब का फूल बना दें.

उसने बड़ी कातरता से अऩगिनत बार प्रार्थना की. परमात्मा को उस पर दया आ गई. उन्होंने उसे बहुत समझाया कि तू इस झंझट में मत पड़. तुझे जो मैंने रूप दिया है उस पर संतुष्ट रहना सीख, गुलाब के फूल की बड़ी तकलीफें हैं.

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तूफान में गुलाब की जड़ें उखड़ने लगती हैं. ज्यादातर तो खिलने से पहले ही तोड़ लिए जाते हैं. बारिश में गुलाब की पंखुड़िया बिखरकर जमीन पर गिर जाती हैं. तू इस झंझट में मत पड़, तू बड़ा सुरक्षित है.

पर घास के फूल को तो गुलाब ही बनना था.

उसने परमात्मा के आगे फिर से वही रट लगाई- मैं बहुत दिन सुरक्षा में रह चुका, अब सोचता हूं कि क्यों न कुछ झंझटों को भी देखा जाए. आप तो मुझे बस गुलाब का फूल बना दें जो होगा देखा जाएगा. सिर्फ एक दिन के लिए सही, चौबीस घंटे के लिए सही पर बना दो मुझे गुलाब.

पास-पड़ोस के घास के फूलों ने भी समझाया कि इस पागलपन में मत पड़. हमारे कुछ पूर्वज इस पागलपन में पड़ चुके हैं. फिर बड़ी मुसीबत आती है. हमारा अनुभव यह कहता है कि हम जहां हैं, बड़े मजे में हैं. पर उसने तो ठान रखा था कि अब तो गुलाब का फूल बनके ही रहना है.

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उसने कहा- मैं कभी सूरज से बात नहीं कर पाता, मैं कभी तूफानों से नहीं लड़ पाता, मैं कभी बरसात को झेल नहीं पाता.

हारकर परमात्मा ने उसे गुलाब का फूल बना ही दिया. सुबह से ही मुसीबतें शुरू हो गयी. जोर की आंधी चलीं. उसका रोआं-रोआं कांप गया. जड़ें उखड़ने लगीं. नीचे दबे हुए घास के फूल कहने लगे कि देखा पागल को, अब मुसीबत में पड़ा.

दोपहर होते-होते सूरज तेज हुआ. फूल तो खिले थे लेकिन कुम्हलाने लगे. बरसा आई, पंखुड़िया नीचे गिरने लगीं. फिर तो इतने जोर की बारिश आई कि सांझ होते-होते जड़ें उखड़ गई. गुलाब के फूलों का पौधा जमीन पर गिर पड़ा.

जमीन पर गिर पड़ा तब वह अपने फूलों के करीब आ गया.

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उन फूलों ने उससे कहा- पागल, हमने पहले ही कहा था. व्यर्थ अपनी जिंदगी गंवाई. मुश्किलें मांगकर ले लीं. माना कि हमें कोई पूछता न था, लेकिन हम सब इसके आदी तो थे. साथ-साथ जीते तो थे. लंबा जीवन जीते थे. अब तुम घड़ी भर के मेहमान बचे हो.

उस मरते हुए गुलाब के फूल ने कहा- नादानों, मैं तुमसे भी यही कहूंगा कि जिंदगी भर ईंट की आड़ में छिपे हुए घास का फूल होने से बेहतर है चौबीस घंटे के लिए गुलाब का फूल हो जाना. जीवन को थोड़ा ही सही पर आनंदपूर्ण जीने का मर्म तुम क्या जानो. मैंने अपनी आत्मा पा ली. मैं तूफानों से लड़ लिया. मैंने सूरज से भी आंख मिला ली, मैं हवाओं से जूझ लिया. मैं ऐसे ही नहीं मर रहा हूं. मैं जीकर मर रहा हूं. तुम मरे हुए जी रहे हो.

जिंदगी को अगर हमें जिंदा बनाना है, तो बहुत सी जिंदा समस्याएं खड़ी होंगी. और सच कहें तो खड़ी होनी भी चाहिए. अगर हमें जिंदगी को मुर्दा बनाना है, तो हो सकता है हम सारी समस्याओं को खत्म कर दें. पर तब आदमी मरा-मरा जीता हैं. मरे हुए का क्या जीवन, क्या समझेगा जीवन का अर्थ.

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-राजन प्रकाश

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