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कलियुग और द्वापर दोनों नल की राजधानी में आ बसे. दो युगों के मिलन से अनिष्ट तो होना ही था. राजा नल यज्ञों का आयोजन करते रहे. धर्मकार्यों से देवताओं को प्रसन्न करते रहे. दमयंती ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया.
बारह वर्ष तक द्वापर और कलियुग नल में किसी दोष की ताक में रहे. एक दिन वह समय आ गया जब उन्हें प्रतिशोध का अवसर मिला.
एक बार की बात है. संध्या के समय नल लघुशंका से निवृत होकर आए. भूलवश वह पैर धोए बिना ही आचमन करके संध्यावंदना करने बैठ गए. अपवित्र अवस्था में देखकर कलियुग नल के शरीर में प्रवेश कर गया. कलयुग ने दूसरा रूप धारण कियाऔर नल के भाई पुष्कर को अपनी बातों में उलझा लिया.
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उसने पुष्कर को समझाया कि नल को जुए में हराकर उसका राज-पाट मांग लो. मैं और द्वापर मिलकर तुम्हारी जीत पक्की करेंगे. पुष्कर ने कलियुग के सिखाने पर नल को जुए की चुनौती दी.
द्वापर ने पासे का रूप धारण किया और पुष्कर की सहायता के लिए उसके साथ चला. पुष्कर बार-बार राजा नल को जुए की चुनौती देने लगा.
दमयंती ने नल को हर बार रोका पर नल पत्नी के सामने भाई की बार-बार की ललकार सह न सके. उन्होंने जुआ खेलने का निश्चय किया. दमयंती समझ गई कि अब विपत्ति का समय आ चुका है. उसने अपनी संतानों को तत्काल अपने पिता के पास रवाना कर दिया. कलियुग के प्रभाव में नल जुए में सर्वस्व हार गए.
मंत्रियों के रोकने पर नल न माने तो दरबारियों ने रानी से आग्रह किया. दमयंती उन्हें विनाश से सावधान करती रोने लगी लेकिन कलियुग के प्रभाव में पड़े नल शून्य रहे.
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