विदुषी भारती का निर्णय सुनकर सभी दंग रह गए. सबने उनकी काफी प्रशंसा की. इसके उपरांत भारती ने शंकराचार्य से कहा कि उनकी जीत आधी है क्योंकि विवाह के बाद पति-पत्नी मिलकर पूर्ण होते हैं.

अभी सिर्फ मंडन मिश्र पराजित हुए हैं, भारती नहीं. भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुनौती दी. शंकराचार्य को एक बिंदु पर भारती के सामने घुटने टेकने पड़े और शास्त्रार्थ की तैयारी के लिए छह माह का समय मांगना पड़ा.

यदि आप लोग उस कथा को पढ़ने के इच्छुक होंगे तो वह कथा संध्याकाल में सुनाउंगा. आप मेल के माध्यम से askprabhusharnam@gmail.com अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं.

उपर की कथा का सार यह है कि क्रोध ऐसा विकार है जो आपके मुख से जीत को खींच लेता है. क्रोध अज्ञानता की ओर और अज्ञानता विनाश की ओर ले जाता है.

क्रोध पर विजय प्राप्त करना मुश्किल तो है लेकिन इसके लाभ को देखकर हमें साधना मार्ग से क्रोध पर जीत का प्रयास भी करना चाहिए.

 

1 COMMENT

  1. आपका आभार, कथाsमृत पान से निश्चित ही सभी अन्धकार नष्ट हो जाते है, ज्ञान नेत्रों जिनका उद्देश्य केवल और एकमात्र यही है हरिहर दर्शन करना, हरिकथा इनको जाग्रत करने का एक सुलभ साधन है, आपकी अति कृपा हुई जो मुझे आज आपके पेज पर आने का अवसर मिला, भगवान की कृपा का कोई अंत ही नही है, इसी प्रकार हरिकथा भी अनंतानंत है, भगवान से प्रार्थना है कि इस सौभाग्य को नित्यप्रति करें !

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