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एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णुजी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है? तो दोनों देवताओं ने कई तर्क देकर स्वयं को श्रेष्ठ बताने का स्वाभाविक आचरण किया.
जब कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था तो देवताओं ने वेदों के सामने अपनी समस्या रखी. वेदों ने कहा- सर्वश्रेष्ठ वही हो सकता है जिसके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ हो. जो अनादि, अनंत और अविनाशी हो.
यह सारे गुण तो भगवान रूद्र में ही समाहित हैं. इसलिए देवतागण आप लोगो शिव को ही सर्वश्रेष्ठ समझें. वेदशास्त्रों से शिव की इतनी प्रशंसा सुनकर ब्रह्मा के पांचवें मुख ने शिवनिंदा करनी शुरू कर दी.
इससे वेद काफी दुखी हुए. तभी रूद्र एक दिव्य ज्योतिपुंज के रूप में वहां प्रकट हो गए. ब्रह्मा ने कहा- हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है. अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ.
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